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सम्भवतः पिछले सप्ताह के “दैनिक जागरण” के किसी अंक में खबर थी कि काँग्रेस का कहना है कि वो सत्ता में आई तो इमामों को वेतन देगी। इसके पहले ये और अन्य पार्टियाँ मुसलमानों को आरक्षण आदि के लाभ की बात कर चुकी हैं। आप को याद होगा विहार के चुनाव के बाद समर्थन के मुद्दे पर रामविलास पासवान ने कहा था कि मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाया जाए तो वे समर्थन देगे अन्यथा नहीं। ये एक झलक है भारतीय लोकतंत्र और लोकताँत्रिक पार्टियों के दशा और दिशा की।
सोचिए उस देश का क्या होगा जिसमें शासक औए सम्भावित शासक सिर्फ एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में अपना कार्यकाल और देश का कीमती समय जाया करते हैं। एक तरफ आरक्षण समाप्त करने की माँग और दूसरी तरफ देश को एक और बँटवारे की आग में झोंकने का काम्। कोई पार्टी यह क्यों नहीं कहती कि अब आरक्षण की समय सीमा और ना बढाई जाए और अब मात्र शिक्षा सम्बंधी सहायता ही दी जाए। यहाँ वोट की राजनीति में सब उल्टा हो रहा है। अब आरक्षण खत्म करने की जगह और बढाया जा रहा है और एक और नई चोट इममों को वेतन के रूप में।
सोचिए कि यदि ऐसा हुआ तो परिणाम कितने गम्भीर होंगे। मान लीजिए कि काँग्रेस की यह चाल सफल हो गई तो क्या अन्य पार्टियाँ शान्त बैठी रहेंगी कदापि नहीं। फिर तो बस एक खेल शुरू हो जाएगा। कितना आश्चर्यजनक है कि इस खबर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त हुई, इसका अर्थ क्या हो सकता है। शायद यही कि सभी दल इस दलदल के बनने का इन्तज़ार कर रहे हैं ताकि वे इसका फायदा खुद भी उठा सकें। अब ऐसे में भला कौन और क्या प्रतिक्रिया दे। सभी को बारी का इन्तज़ार भर है।
अब देश में सरकारी पैसे पर आतंकवाद फूलेगा, फलेगा और पनपेगा। कोई इमामों को तो कोई पादरियों को और कोई पुजारियों और पुरोहितों को वेतन बाँटेगा। इस वेतन का खुलेआम दुरुपयोग होगा और किसी का इसपर कोई अंकुश भी नहीं होगा। तथाकथित धर्म ने पहले ही इस देश का बहुत नुकसान किया है और अब तो किसी भी नुकसान को सहने की शक्ति भी नहीं बची है हमारे पास और ऐसे में हमारे सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ यदि ऐसी चालें चलेंगे तो फिर देश कैसे बचेगा।
देश की आम जनता को, वो चाहे किसी जाति या धर्म की हो, तेरे-मेरे फायदे का लालच तो त्यागना ही होगा अन्यथा देश नहीं बचेगा।
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