भारतीय इतिहास साधु सन्तों की अजब गजब कहानियों से भरा पड़ा है। आज भी हजारों साधु सन्त हमारे समाज में अपने अपने झोपड़ों, कुटियों और कुछ महलों में विराज रहे हैं। कितनी अजीब लगती है यह बात कि जो त्यग और निःस्वार्थ सेवा के लिए जाने जाते थे आज सुविधाभोगी और समय समय पर बदनाम होने वाले चरित्र मात्र रह गए हैं। आखिर ये गिरावट क्यों आई? पिछ्ले लगभग एक सप्ताह से सत्य सांई की खबरे सब की जुबान पर हैं जिन्हे पिछले सांई बाबा का अवतार भी मानते है लोग। परन्तु तब और अब के सांई के जीवन के अन्तर को कभी देखा या सोचा आपने। यदि नहीं तो सोचिए क्यों कि आज नही तो कल सोचना ही पड़ेगा आपको। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। क्या कभी आशा राम बापू या इनके जैसे अन्य किसी सन्त के बारे नहीं सोचा आखिर क्यों? ये सभी दुसरों को मोह माया के चक्कर में ना पड़ने का सन्देश देने वाले खुद किस कदर ऐसे ही में भीचक्करों में उलझे हैं ये तो हम सभी को पता है। इनके शिष्य भी मन्त्री और IAS या PCS अधिकारी या फिर बड़े बड़े व्यापारी ही होते हैं। आम आदमी की अपनी कोई सोच ही नहीं है इसलिए भेंड़ चाल में फँसा रहता है। पुराने साधु सन्त कभी भी ऐशोआराम की जिन्दगी नही जीते थे और आम आदमी के बीच उससे भी अधिक आम बन कर जीवन यापन करते थे और जो रूख सूखा मिलता था उसी में सन्तुष्ट रहते थे। कभी कभी तो भूखे भी सो जाते थे। आज कोई किसी एक सन्त का नाम बताए जो इस तरह का हो। आज माल पुए उड़ाने वाले और AC में सोने और चलने वाले महात्मा ही ज्यादा रह गए हैं। ऐसे सन्तों के पास करोड़ों या अरबों की सम्पत्ति है और उसे बचाए रखने के लिए इन्हे सुरक्षा गार्ड की आवश्यकता पड़ती है। अपने ही कुचक्रों में उलझे ये समाज को क्या देंगे? इतना सब होने के बावज़ूद मैं कुच्छेक की प्रशंसा भी करना चाहूँगा क्योंकि कुछ सन्त लोग सस्ते दाम पर औषधियाँ या अन्य सामान बनवा कर बिकवा रहे हैं इतना ही नहीं प्राकृतिक आपदाओं के समय ये पीड़तों की निःशुल्क और निःस्वार्थ सेवा करते हैं जिससे समाज का कुछ भला भी इनके द्वारा हो जाता है। l लेकिन हमारा प्रश्न तो फिर भी वही रहेगा क्या हम अपना समय बरबाद करें इनके लिए?
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