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बाल श्रम : दोषी कौन

एक विश्वास
एक विश्वास
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कैसी अजीब बात है कि हमारे देश में बाल श्रम को रोकने के लिए कानून बना है फिर भी यहाँ बाल श्रमिक कम होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। देश में मंत्री से संतरी तक किसी को फिक्र नहीं है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। बस कभी कभी कुछ छापेमारी हो जाती है और वो भी शक के घेरे में रहती है।
जब कोई गरीब अपनी संतान से कार्य करवाता है तो लोग कहते हैं कि देखो कितने जालिम माँ बाप हैं कि स्कूल जाने की उम्र में बच्चों से काम करवा रहे हैं। क्या ऐसा कहने वाले कभी अपने गिरेबान में भी झांकेंगे या दूसरों को ही रास्त बताते रहेंगे? मैं यह मानता हूँ कि जो जितने बच्चे पाल सके उतने ही पैदा करे पर सरकार देश हित में ऐसा कानून भी तो बनाए। इससे भी बड़ी बात है कि ये तो गरीब और अनपढ है, आखिर हमारा पढा लिखा तथाकथित सभ्य समाज जो कर रहा है वह क्या है? क्या कभी उनपर किसी ने उँगली उठाई?
हमारे देश में एक गरीब को ही अपराधी या गुनहगार क्यों ठहराया जाता है? बड़े लोगों के हर अपराध पर पर्दा डालो और उनके अपराध को गरीब की चादर बना दो यही होता आ रहा है हमारे देश में। आज कल टेलीविज़न पर आप भी बच्चों के नाच गाने वाले या अन्य कार्यक्रम अवश्य ही देखते होंगे, तारीफ भी करते होंगे और कभी तो आप अपने बच्चे को वहाँ पहुँचाने का ख्वाब भी बुनने लगते होंगे। पर कभी आपने सोचा कि यह सब क्या है? क्या ये बाल श्रम और नंगनाच नहीं है? क्या लोग कुछ पैसों और नाम के लिए अपने बच्चों कि शिक्षा को चौपट नहीं कर रहे हैं क्यों कि एक कार्यक्रम के लिए हफ़्तों या महीनों बाहर रहना पड़ता है। अब ऐसे में बच्चा क्या पढेगा और क्या होगा शिक्षा के अधिकार कानून का? क्या कोई इस सब की खोज खबर लेने वाला है?
एक गरीब अभिभावक से एक पढा लिखा समझदार अभिभावक ऐसे में अधिक जिम्मेदार माना जाएगा और इसीलिए यदि वो कुछ गलत करता है तो उसका गुनाह भी बड़ा और अक्षम्य होना चाहिए। क्या हमारा समाज या हमारी सरकार इस तरह के अपराध या भ्रष्टाचार को दूर करने का कभी बीड़ा उठाएगी? वैसे तो अभिभावक खुद जागें और इस अपराध से बचें परन्तु हमारे समाज के भ्रष्ट और स्वार्थी लोग ऐसा करेंगे मुझे तो नही लगता।

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