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मारा गया ओसामा और सच साबित हुई आशंका कि वो पाकिस्तान की ISI के संरक्षण में ऐश कर रहा है। अमरीका ने तो अपनी ताकत का एहसास करा दिया और अपना काम भी कर दिखाया। बारी है अब भारत की। क्या हमारे प्रधानमंत्री भी अब साहस जुटाएँगे? क्या वो भारत की शक्ति दुनिया को दिखाना चाहेंगे या फिर भारत को एक कमजोर और पिछलग्गू देश ही साबित करने में अपनी बहादुरी समझेंगे?
कुछ लोग समझते हैं कि युद्ध भारत को बरबाद कर देगा और यह सत्य भी है फिर भी मैं यही कहूँगा प्रधानमंत्री जी कर लीजिए दो दो हाथ क्योंकि आज नहीं तो कल यह हो कर रहेगा और कल जब हम इस रास्ते पर आएँगे तो हमारे पास खोने को बहुत कुछ होगा निश्चित ही आज से बहुत ज्यादा। फिर क्यों ना हम भी बहती गंगा में हाथ धो लें। आखिर आज अवसर भी तो है कि अमरीका भी कुछ कहने या विरोध की स्थिति में नहीं है।
मैं जानता हूँ कि मनमोहन जी कहीं भी किसी का मन नहीं मोह पाए हैं और आज अवसर है तो भी वो ऐसा नहीं कर पाएँगे। ऐसा कारनामा इंदिरा जी के बाद हमारे किसी भी प्रधानमंत्री में करने का साहस नहीं दिखा। अटल जी ने एक समय संकेत दिया कि वो कुछ कर दिखाने का माद्दा रखते हैं परन्तु कारगिल युद्ध में उनका साहस भी जवाब दे गया था और हम दुनिया के सामने कमजोर देश ही साबित हो कर रह गए थे।
मैं जानता हूँ कि आक्रमण की तो बात बहुत दूर की है, हमारे नेता अफजल और कसाब को फाँसी देने का साहस अब भी नहीं जुटा पाएँगे और पाकिस्तान का मुहँ अभी भी ताकेंगे। पाकिस्तान भी भारत की इस कमजोरी से वाकिफ है और वो इसका नाजायज फायदा उठाता रहा है और उठाता भी रहेगा। मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि जब देश की जनता सब कुछ सह कर पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात से सहमत है फिर हमारी सरकर क्यों समझौता वादी बनी हुई है। कुछ तो बात जरूर होगी और कोई बहुत फायदे की भी होगी वरना ये सब ऐसा नहीं करते। क्योंकि सभी जानते हैं कि जो भी पाकिस्तान से युद्ध करके भारत को अब विजय श्री दिलाएगा भारतीय जनता उसे सिर माथे बैठाएगी। भला कौन नेता नहीं चाहेगा ये? और यदि ऐसा नहीं चाह रहे हैं ये तो इसका अर्थ क्या निकाला जाए?
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