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रंगबदलू

एक विश्वास
एक विश्वास
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लोग कहते हैं,
यार तुम तो, खूब रंग बदलते हो|
कभी पूँजीवादी, कभी समाजवादी बनते हो|
ये खुशी के गीत कैसे रचते हो?
मैंने लोगों को समझाया, खुशी का राज बताया|
हर पहली को भरती अपनी जेब,
तो मिलती है पूँजीवादी सेज,
फ़िर हफ्ते बाद जिंदगी,
होती गमों से लबरेज|
अब जीने की मजबूरी है, तो समाजवाद जरूरी है|
ये धंधा भी क्या खूब चलता है,
माँगो एक तो चार मिलता है|
पर कब तक उधार माँगे, शर्म आती है|
फिर रंग बदलने की तरकीब ही काम आती है|
उसका काम बिन माँगे चल जाता है,
जो मानवतावादी बन जाता है|
पड़ोसी से दुख ना देखा जाएगा,
तो ना सही खाना, नाश्ता जरूर कराएगा|
अपना पेट उसी से भर जाएगा|
फिर शाम कहीं और, मानवता के नाम,
कल भी दो रोटी का ठौर कहीं मिल ही जाएगा|
और पलक झपकते दिन पहली का आजाएगा|
तो भैय्या गर बात समझ में आए,
तुम भी रंग बदलना सीख लो,
एक सुन्दर जीवन जीत लो|

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