एक विश्वास
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शोहरत के नशे में, नहीं चूर हो जाऊँ,
डरता हूँ मैं कहीं ना, मशहूर हो जाऊँ।
कोहरा बदगुमानी का, इतना घना न हो,
कि इन्सानियत से मैं, बहुत दूर हो जाऊँ।
है कसम तुझे खुदा, कभी ऐसा नहीं करना,
देखूँ कोई मुफलिस, तो मग़रूर हो जाऊँ।
जो जी मे आए करना, ये करना नहीं खुदा,
कर के गुनाह भी, मैं बेक़सूर हो जाऊँ।
शोहरत की बुलन्दियाँ, भातीं बहुत मगर,
किस-किस की नजर, का चश्मेनूर हो जाऊँ।
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