Menu
blogid : 5061 postid : 73

ग़ज़ल

एक विश्वास
एक विश्वास
  • 149 Posts
  • 41 Comments

शोहरत के नशे में, नहीं चूर हो जाऊँ,
डरता हूँ मैं कहीं ना, मशहूर हो जाऊँ।

कोहरा बदगुमानी का, इतना घना न हो,
कि इन्सानियत से मैं, बहुत दूर हो जाऊँ।

है कसम तुझे खुदा, कभी ऐसा नहीं करना,
देखूँ कोई मुफलिस, तो मग़रूर हो जाऊँ।

जो जी मे आए करना, ये करना नहीं खुदा,
कर के गुनाह भी, मैं बेक़सूर हो जाऊँ।

शोहरत की बुलन्दियाँ, भातीं बहुत मगर,
किस-किस की नजर, का चश्मेनूर हो जाऊँ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh