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ग़ज़ल

एक विश्वास
एक विश्वास
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माना तेरे नैन ये, आग के अंगारे हैं,

दिन हमने भी तपती, धूप में गुजारे हैं।


डराइए उन्हें जिन्हें, डरना ही आता है,

मत सोचिए हम भी, औरों से बेचारे हैं।


कोशिश तो आपने की, हमको मिटाने की,

खुद गर्दिश में आगए, आप कैसे सितारे हैं।


उस आसमाँ से पूछो जो, गवाह हर बात का,

तुम ही नहीं समझे कि, हम आशिक तुम्हारे हैं।


ढ़ूँढ़ लो इक रास्ता तुम, खुद के लिए ‘अशोक’,

उनका क्या भरोसा, जो खुद बेसहारे हैं।

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