शुक्रवार 13 मई को जब विधान सभाओं के चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेसियों के बयान यही बयाँ कर रहे थे कि “बेगानी शादी में…………।” मुझे समझ नहीं आया कि इन नेताओं की खुशी का राज आखिर क्या हो सकता है? आखिर कितने दिन की होगी ये खुशफहमी? पहली बात तो ये कि जिन राज्यो मे चुनाव हुए थे वहाँ पर कहीं भी राष्ट्रीय स्तर की दूसरी राजनीतिक पार्टी का कोई अस्तित्व ही नही है और जो क्षेत्रीय पार्टियाँ वहाँ है वो ही कभी मुख्य विपक्ष तो कभी सत्ता पक्ष बन कर उभरती हैं। रही बात कांग्रेस की तो सभी जानते हैं कि वो भारत की सबसे पुरानी पार्टी है जिसका नाम लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे है और इस लिए इसके नाम से परिचित हैं। बावजूद इन सब के इस पार्टी का बंगाल और तमिलनाडु में बुरा हाल है। हाल में हुए चुनाव की बात करें तो कांग्रेस की जीत असम में हुई मानी जा सकती है। केरल में कब दो विधायकों की अन्तरआत्मा उन्हे कोसने लगे क्या भरोसा है इसका? और जिस दिन ऐसा हुआ गई सरकार्। बंगाल का भी हाल यही है जब तक ममता से ब्लैकमेल हो सकते हो कर लो राज वरना नातो तुम्हारा कुछ था ना है फिर क्या चलो बाहर्। ममता और जयललिता कौन नहीं जानता है इन्हे जो नहीं जानते हैं वो मायावती को तो जानते ही होगे, समझ लीजिए दोनो को माया मेमसाहब की बहनें। अब तो आप समझ ही सकते हैं कि कांग्रेस की खुशी कितने दिनों की हो सकती है? जय ललिता के नाम भी भूमि घोटाला और परिवार या मित्रों को फायदा पहुँचाने का अपराध जुड़ा है और ममता की रेल कितना सफल कितना फेल भला कौन नहीं जानता? सिवाए बदले की राजनीति के शायद और कुछ होने वाला नहीं है। इतिहास तो यही कहता है ममता जरूर पहली बार मुख्यमंत्री बनेगी तो शायद कुछ अच्छा करें पर जब नक्सली कुछ करने दे तब ना। सत्तारूढ़ दल जिस तरह हारे हैं क्या यह परिवर्तन का संकेत माना जाए। यदि ऐसा है तो ये बाबा राम देव के लिए अच्छी खबर हो सकती है। यदि जनता ने भ्रष्टों से ऊब कर बड़े की जगह छोटे भ्रष्ट को चुना है तो मौका आने पर अब वो साफ सुथरे लोगों को भी चुनेगी। परन्तु क्या सच ही ऐसा हुआ है मुझे तो इस बात में संदेह है। अगर कुछ ने ऐसा किया है तो वे फिर छले जाएँगे।
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