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कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा

एक विश्वास
एक विश्वास
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लेकर,
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा,
मैंने एक महल, सियासत का जोड़ा,
है कोई जो इसे तोड़े?
दीवारों पर जातिवाद की मजबूती,
दरवाजों पर भ्रष्टाचार की जूती,
और धर्मनिरपेक्षता की छत तले,
लगी खिड़कियों से, भाषाओं की बोले तूती।
समय समय पर, नए रोड़े मँगाता रहता हूँ,
दरओदीवार सजाता रहता हूँ,
बोफोर्स, मण्डल, कमण्डल,
सैकड़ों हथियार हैं।
नेता, नक्सली, आतंकी,
है सब अपने फरियादी,
सब ने मेरी धूम मचा दी,
कौन मुझसे पार पाएगा?
कहाँ रहेगा वो, जो मुझसे टकराएगा।

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