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तम्बाकू का विरोध

एक विश्वास
एक विश्वास
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तो एक और दिन आया तम्बाकू के विरोध का और चला गया। हम भी अपनी सड़ी गली मानसिकता को नहीं छोड़ सके और सारा दिन दूसरों पर तोहमत लगाने में खर्च कर दिया। शायद ही किसी ने इसकी जिम्मेदारी खुद पर ली होगी। सभी सरकार को और कम्पनियों को ही कोस कर अपने कर्त्तव्य निर्वाह को पूर्ण मान लेते हैं। आखिर जब हम खुद सो रहे हैं तो दूसरों को जगाने की बात सोच भी कैसे सकते हैं? परन्तु ये भारत है यहाँ तो सब यूँ ही चलता है।
आज हमारे युवा किसी भी प्रकार के नशे के सर्वाधिक उपयोगकर्ता के दायरे में आते हैं। इनमें भी पंद्रह से बीस के बीच के लोगों का तो यह फैशन या लाइफ स्टाइल है। यह वर्ग इसको स्टेटस सिम्बल के तौर पर लेता है। उसे लगता है कि वो ऐसा कर के लोगों के बीच अपना रुतबा बना रहा है और लोग उसकी स्टाइल और अमीरी के कयल हो रहे हैं। यह लड़कियों को आकर्षित करने का भी माध्यम है और अब तो लड़कियाँ खुद नशे की आदी हो रही हैं। इतना कुछ हो रहा है और यह सब किसी से छिपा भी नहीं है फिर सिर्फ सरकार ही दोषी क्यों वे अभिभावक क्यों नहीं जो सिर्फ कमाई के चक्कर में पड़े हैं और अपने बच्चों की परवरिश पर उनका ध्यान नहीं के बराबर है। हमारे एक मित्र ने अपने बच्चे का दाखिला ग़ाजियाबाद के एक निजी इंजीनियरिंग कालेज में करवाया वहाँ हास्टल में उसका साथी शराब पीता था यह बात हमरे मित्र ने उस बच्चे के अभिभावक से बताई तो उनका कहना था कि “अरे वो कभी कभार पी लेता है” सोचिए समाज कहाँ जा रहा है क्या सरकार आप के घर आएगी और आपका हाथ पकड़के आप से अनुरोध करेगी कि भाई ये आदत बुरी है इसे छोड़ दो।
स्थितियाँ किसी से छिपी नहीं हैं स्कूल में अध्यापक को यह अधिकार नहीं है कि वो किसी बच्चे को डाटे, पड़ोसी किसी बच्चे की गलत आदत की बात करे तो उल्टा उसे ही नसीहत कि पहले अपने को सुधार लो। मैं आज तक नहीं समझ सका कि हमारे समाज को हो क्या गया है अरे भाई आपके भलाई की बात करने वाला खुद क्या है कैसा है इससे क्या लेना आप तो बस अपन भला कर लें मगर हम तो आदी हैं दूसरों की गलतियों को देखने के फिर भला यह कैसे सम्भव हो सकता है?

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