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टोपों की टोपी राजनीति

एक विश्वास
एक विश्वास
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आजकल देश में टोपाशंकर बहुत हो गए हैं और टोपी की राजनीति कर रहे हैं। देश तमाम समास्याओं से जूझ रहा है और भाई लोगों को टोपी की पड़ी है। किसी को क्या पड़ी है कि नरेन्द्र मोदी ने टोपी पहनी की नहीं । टोपी पहनना और खुद को मुल्ला कहलवाना तो बस एक दिखावा है कोई धर्मनिरपेक्षता नहीं। मुस्लिमों की वकालत करने वाले कितने नेताओं ने अपने पद किसी मुस्लिम के लिए त्यागे हैं। अगर हिम्मत है तो वो हिन्दू नेता जो मंत्रियों की कुर्सी पर वर्षों से चिपके हैं अपना पद किसी मुस्लिम को सौंप कर दिखाएँ। दलों के दलदल और राजनीति की बदबूदार गलियों से हमारे धूर्तनेता आखिर कब बाहर निकलेंगे।
मोदी ने टोपी पहन कर दिखावा करने के नेताओं के दुराचरण पर प्रहार कर एक अच्छा उदाहरण पेश किया है। उन्होंने उन हिन्दू-मुस्लिम दगाबाजों की तरह आचरण नहीं किया जो दूसरों को तो बदनाम करते हैं और खुद गलत काम करते हैं। गिनेचुने मुस्लिमों को छोड़ दिया जाए तो हम पाएँगे कि यह क़ौम कभी किसी दूसरे धर्म के कार्यक्रमों में शिरकत नहीं करती है और जहाँ पर मूर्तिपूजा की बात हो वहाँ तो बिलकुल भी नहीं।“हिन्दू हर मंदिर और मजार के आगे सिर झुका देते हैं मगर मुस्लिम ऐसा नहीं करते।” यह बात एक चर्चा के दौरान मेरे प्रशंसक, आलोचक, मित्र और छोटे भाई (क्योंकि वो मुझे बड़ा भाई कहते हैं) फर्रूखाबाद के हाफिज़ पुत्तन मियाँ ने कही थी और यह उम्मीद भी जाहिर की कि एक दिन यह भेद खत्म होकर रहेगा। मैं भी यही सोचता हूँ कि हमें किसी की आलोचना से बचना चाहिए। वक्त बदलेगा, लोग एक दूसरे को आदर देना भी सीखेंगे। संस्कार बदलने में समय तो लगेगा ही।
देशवासियों आप अच्छे काम करनेवाले कि जाति-धर्म का चक्कर छोड़कर अपने और देश के विकास की बात सोचिए। क्या फर्क पड़ेगा इस बात से कि देश को आगे कौन ले जा रहा है? मगर फर्क अवश्य पड़ेगा इस बात से कि कौन इसे पीछे की ओर खींच रहा है। अक्सर बलात्कारी को फाँसी की सजा की माँग करते लोगों को आपने देखा होगा। मैं सोचता हूँ कि कब लोग आर्थिक अपराधियों के लिए फाँसी की माँग करेंगे। जब कोई देश का एक पैसा चुराता है तो वो सरकार का नहीं देश की एक अरब जनता के जेब पर डाका डालता है। अतः हमें यह भेद करना सीखना ही होगा छोटे नुकसान की अपेक्षा बड़े की चिन्ता पहले करनी होगी अगर भारत को आगे बढाना है और दुनिया का सिरमौर बनाना है ।

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