अन्ना को भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में अपार जनसमर्थन क्या मिला कि उनके सहयोगियों के पैर सातवें आसमान पर पड़ने लगे। अन्ना टीम यह भूल गई कि ये भारत है जिसका कोई भाग्यविधाता नहीं है सिवाय समय या परिस्थितियों के। अब देख लीजिए प्रशान्तभूषण जी को। आखिर कर बैठे ना नादानी। खुद को जाने क्या समझ बैठे और दे डाला एक विवादास्पद बयान बल्कि देश द्रोही कहें तो ज्यादा ठीक होगा। अब ऐसे बयान पर जो प्रतिक्रिया होनी थी हुई परन्तु सबसे दुखद अन्ना जी का बयान लगा। उन्होने बिल्कुल ठीक कहा कि किसी को प्रतिक्रिया में मारपीट का अधिकार नहीं है परन्तु अन्नाजी यह क्यों भूल गए कि किसी भारतीय को भी ऐसे बयान देने की छूट बिलकुल नहीं है जैसा आदरणीय वकील साहब ने दिया था। सिविल सोसाइटी के सदस्य के नाते उनकी भर्त्सना टीम अन्ना को करनी चाहिए थी ना कि बचाव। मगर ऐसा नहीं हुआ, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं पहले भी कह चुका हूँ कि टीम अन्ना दूध की धुली नहीं है मगर वो यदि आज ईमानदारी के साथ राष्ट्र की सेवा में खुद को समर्पित करना चाहते हैं तो हमें खुलकर उनका समर्थन करना चाहिए। पर सवाल यह है कि जब बीच राह ही यह टीम अपने तेवर दिखाने लगे तो? तो अन्ना जी को सोचना पड़ेगा कि उन्हे आगे क्या और कैसे करना है? इतना ही नहीं उन्हे आगे आने वाली चुनौतियों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। और रही बात जनता की तो उसे अपने निजी स्वार्थों के आगे देश-दुनिया की चिन्ता की फुर्सत ही कहाँ है। यह सचमुच एक शोचनीय और चिन्ता की बात है कि इस देश में आखिर विश्वास किस पर किया जाए। शासन प्रशासान और आम जन सभी क एक जैसा हाल है। ऐसे में देश का क्या होगा यह सोच कर ही कलेजा मुँह को आता है। बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आए जरूर परन्तु लग रहा है कि ये भी अपने सहयोगियों के मकड़जाल में फँस कर दम तोड़ देंगे। इनका हश्र राम मनोहर लोहिया जैसा होगा। शायद ये लोक नायक जय प्रकाश नारायण भी बन जायें पर असफलता तो पिछले दरवाजे से अन्दर झाँक ही रही होगी। जेपी ने इस देश में क्रान्ति की ज्वाला जगाई और उसका हश्र हम सब देख चुके हैं। सत्ता परिवर्तन हुआ और देश उसे सम्भाल ना सका और हम गंदी नाली के कीड़े फिर उसी गंदगी में वापस कूद गए। अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो आज हम कहाँ होते, सोचिए?
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