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कौन जीताः अन्ना या काँग्रेस

एक विश्वास
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हरियाणा के हिसार लोक सभा उपचुनाव में विश्नोई की जीत आखिर किसकी जीत है अन्ना के काँग्रेस को हराने के आह्वान की, सरकार विरोधी मतदाताओं की, विरोधी पार्टियो की बढत की, या फिर सहानुभूति की। शायद इन चारों की या ना सही चारों कि तो यह तो निश्चित है कि इनमें से किसी एक की तो बिल्कुल ही नहीं। इसलिए किसी को भी खुशफहमी का शिकार होने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं हैं। वैसे भी भारत की जनता आपकी किस बात पर कब फिदा हो जाएगी और अगले ही पल किस बात पर आप से खफा हो जाएगी यह तो शायद इस जनता को खुद ही पता नहीं रहता। दूसरी तरफ अन्ना के सहयोगी अन्ना की छवि को बट्टा लगाने में कहीं कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आने वाले वक्त में अन्ना जी को खुद की इज्जत दाव पर लगती नजर आ सकती है और इसका सबसे दुखद पहलू शायद यही होगा कि ऐसा उनके खुद के सहयोगियों की ही वजह से ही हो रहा होगा।
हिसार उपचुनाव में काँग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त होना अवश्य ही एक अति महत्वपूर्ण और शोचनीय मुद्दा है। क्या काँग्रेस प्रत्याशी इतना कमजोर था या फिर ऐसा स्थानीय परिस्थितियों में हुआ या फिर काँग्रेस की नाव सच में ही अब जर्जर हो चली है। मैं फिर कहूँगा कि काँग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी हो सकती है मगर अभी इतनी देर भी नहीं हुई है कि उसके पास अपनी गलती सुधारने का मौका ही ना रह गया हो। काँग्रेस इस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और इसके बचेखुचे पुराने दिग्गजों के पास जनता के लिए कुछ समाधान भी अवश्य ही मिलेंगे। अतः पार्टी चापलूसी के दलदल से बाहर निकलने का प्रयस करे और लोगों से जुड़े, अपने पुराने नेताओं के सहारे पार्टी का जीर्णोद्धार करने का प्रयत्न करे, तो इसका और देश दोनों का भला एक बार फिर सम्भव हो सकता है।
यही बात विपक्ष के लिए भी है कि आज देश जिन परिस्थितियों में फँसा है उसमें इनके लिए एक सुनहरा मौका हाथ लगा है अपनी छवि सुधारने और देश की बाग डोर सम्भालने का। परन्तु यह सम्भव तभी हो सकता है जब विपक्ष आम लोगों में यह विश्वास पैदा कर सके कि वो एकजुटता और ईमानदारी से देश की बागडोर सम्भालने में सक्षम हैं। अब यही बात काबिलेगौर है कि भविष्य भारत को लेकर किधर जानेवाला है। क्या काँग्रेस अपने चाटुकारों से मुक्त होगी? या फिर विपक्ष अपने निजी स्वार्थों और महत्वाकांक्षाओं से बाहर निकल पाएगा? या क्या इस देश के लोग सही और गलत का भेद करने में सक्षम हो पाएँगें या फिर ये सब भी अपने स्वार्थों में डूब कर देश को भी डुबोने के भागीदार बन जाएँगे? 17-10-11

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