तेल कम्पनियों ने पेट्रोल के मूल्य में वृद्धि की है और सारे देश में विरोध और प्रदर्शन की झड़ी लग गई है शायद बिना यह सोचे ही कि इस बढोतरी या फिर बढे दाम वापस लेने की स्थिति में क्या नफा नुकसान होने वाला है? यहाँ तो विरोध होता ही है बस विरोध करने के लिए और प्रचार पाने के लिए जिसका दोष पूर्णरूप से मीडिया पर मढा जाना चाहिए। बनारस में विरोधस्वरूप लोगों को एक मोटरसाइकिल कूड़े में फेंकते हुए तो मीडिया ने दिखाया पर यह नहीं दिखाया कि बाद में वह मोटरसाइकिल कैसे झाड़ पोछकर घर में वापस रख ली गई। और यदि वापस नहीं ली गई तो यह बताया जाय कि वह कहाँ फिकी पड़ी है ताकि किसी गरीब का भला हो। मैं आज तक मीडिया के द्वारा ऐसी खबरों को दिखाए जाने का कोई औचित्य नहीं समझ सका हूँ। आखिर क्या मिलता है किसी को ऐसी खबरें देख या दिखा कर? कभी-कभी लोगों के द्वारा दिए जानेवाले तर्क भी कुतर्क से लगते हैं जैसे कि बच्चे स्कूल कैसे जाएँगे?, आफिस जाने के लिए अब साइकिल लेनी होगी क्योंकि बाइक/कार चलाना मुश्किल होगा या डीजल/गैस/केरोसीन पर ज्यादा सबसिडी क्यों दी जा रही है, आदि आदि। ऐसे प्रश्न करनेवालों पर बस तरस आता है। इन प्रश्नों के उत्तर तो हमें स्वयं ही देने होंगे कि हम 18 वर्ष से कम उम्र के अपने बच्चे को बाइक देते ही क्यों हैं, हमारे बड़े बच्चे सार्वजनिक वाहन का प्रयोग क्यों नही कर सकते हैं? या हम खुद अपने आफिस जाने के लिए सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करने में शर्माते क्यों है? रही बात सबसिडी की तो अगर सरकार डीजल/गैस/केरोसीन पर ज्यादा सबसिडी ना दे तो मंहगाई सातवें आसमान पर होगी और फिर तो शायद यही विरोधी वर्ग आसमान सिर पर उठा लेगा। एक बात जो कहनी चाहिए वो कोई नहीं कहता कि हम पान खाने या नमक लेने बाइक से नही जाएँगें या डीजल पर सबसिडी और बढा कर डीजल से चलनेवाली छोटी गाड़ियों के उत्पादन पर रोक लगा दे जिससे डीजल का उपयोग सही रूप से और मात्र व्यावसायिक उत्पादन में हो सके और इसका लाभ समस्त जनता को हो। पक्ष-विपक्ष के सभी दल बरसाती मेंढकों की भाँति टर्टराने लगे हैं शायद चुनावी मौसम के आने की आहट की वजह से परन्तु याद करें कि आज तक ये क्या करते रहे हैं? अठारह बार की मूल्य वृद्धि क्या मात्र मलाई खाने के लोभ में ये सब झेल गए? ममता बनर्जी ने अपने कार्यकाल में रेल किराया कभी नहीं बढाया और आज उन्ही के मंत्री वही किरारा बढाने का रास्ता खोज रहे हैं, तो क्यों? क्या इसकी वजह मात्र यही नहीं है कि पहले जो किया गया वो गलत था, फिर आज पेट्रोल के मूल्य वृद्धि पर वे इतना बवाल क्यों मचा रही हैं? और यदि काँग्रेस के साथी दल वास्तव में यह विरोध सैद्धांतिक रूप में और ईमानदारी से कर रहे हैं तो आज तक किस मजबूरी में उसे वे समर्थन जारी रखे हुए हैं। ये देश राजनीति के दलदल में फँसा हुआ एक अभागा राष्ट्र है जिसे कभी विदेशी चील-कौए नोचते थे पर आज तो इसे अपने ही नोच रहे हैं। 4-11-2011
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