मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता को ले कर सरकार पर कुछ विपक्षी हमलावर हैँ। जो लोग ये हमले कर रहे हैँ आज वे मुहँ बन्द किये बैठे हैँ क्योँकि जिस सरकार को वो बिहार में समर्थन दे रहे हैँ उस सरकार ने एक मंत्री ऐसा बना दिया जिसको शपथ लेने में भी दिक्कत हो रही थी क्योंकि उन्हें पढ़ना आता ही नहीं है। यही है भारत का लोकतान्त्रिक ढ़ाँचा, कि हमने कुछ किया तो ठीक मगर तुम वही करोगे तो गलत। सवाल सही गलत का नहीं, भावनाओं का है। हमारी मानसिकता का है। एक ही गलती के दो पैमाने, भला ये कहाँ की नैतिकता है? आज तक न तो सारे स्वास्थ मंत्री डाक्टर हुए ना ही सारे शिक्षा मंत्री शोधकर्ता। ऐसे कृषिमंत्री यहाँ बन चुके हैं जो इतना भी नहीं जानते कि चने खेत में उगते हैं या फ़िर किसी बाग में पैदा होते हैं वैसे कहने को ये अपने को कृषक कहते रहे हैं जबकि सच्चाई ये है कि ये सब, जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद भी, आज तक जमीदार ही बने हैं। क्या हमारे नेता इन बातों को मानेंगे और कुछ कार्यवाई करेंगे? शायद नहीं क्योंकि हर पार्टी में ऐसे लोगों की भरमार है और ये सब इनके जिताऊ उम्मीदवार हुआ करते हैं। शिक्षा की ही बात करें तो कपिल सिब्बल या मुरली मनोहर जोशी बहुत पढ़ेलिखे व काबिल थे परन्तु देश की शिक्षा को चौपट करने का जितना श्रेय इन्हें मिलेगा उतना शायद ही किसी और को। इन दोनों ने अपने अधीन चलने वाले शिक्षण संस्थनों में ऐसे लोगों को उच्च पदों पर बैठाया जिनका शिक्षा विभाग से कभी कोई लेना देना नहीं रहा। कोई प्रशासनिक सेवा से तो कोई राजस्व सेवा से उधार ले कर थोप दिया गया शिक्षा विभाग पर। ऐसे लोग विदेश यात्राएँ करते हैं और वहाँ की नीतियाँ बिना परिवेश का ध्यान दिए यहाँ लागू करते हैं। कपिल सिब्बल ने प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षण की रूपरेखा तैयार करने का जिम्मा दिया एक ऐसे व्यक्ति को जो हमेशा उच्च शिक्षा से ही जुड़ा रहा। अब आप खुद सोचिए कि शिक्षा के क्षेत्र में क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है? अगर आपको लगता है कि न्याय ऐसे में भी हो सकता है फिर तो बात यहीं खत्म क्योंकि फिर किसी का कोई भी मंत्रिपद पाना बहस का मुद्दा रह ही नहीं जाता। परन्तु हम जानते है कि मंत्रिपद भले मुद्दा ना हो पर जिम्मेदारी का निर्वहन तो मुद्दा बनत ही है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय मनुष्य के विकास के लिए हर कदम उसके साथ रहता है और उसकी तरक्की के रास्ते खोलने के लिए उसकी मदद को तत्पर रहता है। इसलिए इसका मंत्री सम्वेदनशील हो ये अधिक आवश्यक है। क्योंकि और बातों या मुद्दों को सुलझाने के तरीके तो बाद में निकल ही आएँगे। देश के विकास में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि है, इसलिए शिक्षा की जिम्मेदारी मंत्रालय में चार विशेष अधिकारी रख कर यह काम बखूबी किया जा सकता है। वैसे भी क्या एक व्यक्ति अकेला कोई भी मंत्रालय सँभाल सकता है। शिक्षा के चार अधिकारी अपने क्षेत्र के जानकर हों जैसे एक प्राथमिक शिक्षा का दूसरा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक तीसरा उच्च शिक्षा तो चौथा व्यावसायिक शिक्षा का जानकर हो। ये अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं, चुनौतियों और उसमें किये जा सकने वाले सुधारों से मंत्री को अवगत कराएँ और मंत्री सलाह मशवरा कर उस दिशा में कार्य करें तो हर काम को बखूबी अंजाम दिया जा सकता है। पर क्या ऐसा होगा? कोई सरकार या मंत्री इस दिशा में काम करेगा या सब तू तू मैं मैं ही करते रहेंगे?
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