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रिसते हुए रिश्ते

एक विश्वास
एक विश्वास
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पाकिस्तान के मुद्दे पर हमारे नेता जिस तरह से एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं इससे भारत की छवि अंतर्राष्ट्ररीय स्तर पर खराब हो रही है्। परन्तु राजनैतिक लाभ के लिए तो शायद ये देश को गिरवी भी रख सकते हैं और जरूरत पड़ने पर तो बेंच भी डालेंगे। आज स्थिति यह है कि एक समझदार नागरिक सोच भी नहीं पा रहा है कि वो किसे सच्चा और किसे झूठा माने। लोक सभा चुनाव 2014 के दौरान नरेन्द्र मोदी के भाषणों से लोगों को उम्मीद बँधी कि शायद एक रीढ़धारी प्रधानमंत्री भारत को मिलनेवाला है, पर लोग अब उनसे भी निराश हो रहे हैं। हो सकता है कि यह लोगों की जल्दबाज़ी हो परन्तु कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही पता चल जाते हैं और बुजुर्गों की कही बातें तो शायद ही कभी गलत होती हों। आज एक सिर के बदले सौ सिर लाने की बातें तो दूर यहाँ तो यह भी नहीं लगता कि आज सरकार पाकिस्तान के परोक्ष या अपरोक्ष युद्ध को गम्भीरता से ले भी रही है या नहीं।
भारत कभी अमरीका नहीं हो सकता है आखिर क्यों? यदि हमें अपनी आत्मरक्षा तक का अधिकार नहीं है तो फिर हमें आज़ादी की बात नहीं करनी चाहिए। आखिर ये कैसी आज़ादी है कि हम अपनी समप्रभुता पर हमला होते देखते भर रहें और उसका प्रतिकार तक न कर सकें। कोई भी मुल्क कितना भी ताकतवर क्यों ना हो वो हमें अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाने से कैसे रोक सकता है। कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून हमें बाध्य नहीं कर सकता है कि हम अपने राष्ट्र को एक आतंकी देश के आगे घुटने टेकते, मजबूर खड़े तमाशा देखते रहें। पाकिस्तान वो देश है जिसने हमेशा हमसे गद्दारी ही की है। इसका तो जन्म ही भारत विरोध के रूप में हुआ है फिर भला कैसे हमारी सरकारें इस नापाक मुल्क पर विश्वास करती रहती हैं?
हमारी सरकारों को और आम जनता को यह समझ क्यों नहीं आता कि पाक की नापाक हरकतों से अपने को बचाने का मात्र एक ही रास्ता हमारे पास है और वह है युद्ध्। कुछ लोग युद्ध की भयावहता की, उसके विनाश की बात जरूर करेंगें, परन्तु ऐसे लोग यह ना भूलें कि आज नहीं तो कल युद्ध तो होना ही है। फिर जो कल होना है वो आज ही क्यों ना हो जाए क्योंकि यह तो साफ है कि यह युद्ध जितनी देरी से होगा शायद इसकी भयावहता भी उतनी ही अधिक होगी।
मैं मोदी जी या भाजपा के साथ अन्य पार्टियों के लोगों से यही कहूँगा कि जरा सोचें कि आज जिस तरह से हमारे देश में हमारी उपेक्षा कर पाकिस्तानी राजनयिक ने ह्मारे दुश्मनों से बात की है क्या हमारे किसी राजनयिक में ऐसा करने का साहस है, और यदि कोई यह दुस्साहस करता तो नापाक पाक में उसका क्या हश्र हुआ होता। और अमरीका के साथ कोई ऐसा करता तो उसका क्या हाल होता हमारे नेता तो शायद यह सपने में भी नहीं सोच सकते होंगें। भारत को यदि अपने को शक्तिशाली राष्ट्र की तरह दुनिया के सामने उभरना है तो उसे कुछ कर गुजरना होगा। आज अगर हुर्रियत नेताओं के साथ पाक उच्चायोग के अधिकारियों को भारत ने हिरासत में लेने की कारवाई या फिर देश छोड़ने के लिए कहने का दम दिखाया होता तो नेताओं का और हमारे गैरजिम्मेदार मीडिया का अनावश्यक प्रलाप नहीं होता और चीन तथा अमरीका जैसे देशों को भी सबक मिलता। ये देश जो तानाशाह बनें हुए हैं इनको भी कुछ सोचने को मजबूर होना पडता और हम देशवासियों को भी गर्व का अनुभव होता।

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