कल जब दिल्ली के चुनाव परिणाम आएँगे तोगड़िया आम आदमी पार्टी और दिल्ली की अधिकांश जनता झूम रही होगी। दूसरी तरफ़ भाजपा खेमा अपनी कमियों को तलाश रहा होगा। काँग्रेस भी कुछ मन्थन अवश्य ही करेगी शायद यही कि अन्ना के आन्दोलन के समय अगर अहम त्याग दिया होता तो इतने बुरे दिन तो नहीं ही देखने पड़ते। वैसे यह बात तो अब मोदी और अमित शाह भी सोच रहे होंगे कि अब जनता बेवकूफ तो बनेगी मगर लगातार एक ही व्यक्ति या पार्टी से नहीं। यह भाजपा के लिए ही नहीं केजरीवाल एंड पार्टी के लिए भी सबक है कि दूसरों कि कमियों में अपनी जीत खोजना अपराध भले ना हो पर गलती अवश्य है। अगर दिल्ली के चुनाव समय से हुए होते तो शायद भाजपा फायदे में होती या फिर परिणाम एक बार फिर जोड़ तोड़ का मौका देते सरकार बनाने वालों को। मैं समझता हूँ कि केजरीवाल को मोदी के अभिमान और उनके गलत सलहकार मंडल का शुक्रगुजार होना चाहिए कि एक लालची और स्वार्थी को सत्ता तक सस्ते में पहुँचा दिया। मैं अक्सर सोचता हूँ कि भारत की जनता मूर्ख है या बेचारी या फिर बहुत ही चालाक क्योंकि यह जो करती है वो कुछ अजीब ही होता है। आखिर कैसे कोई किसी भारतीय नेता से यह उम्मीद कर सकता है कि वो सच बोलेगा या वो भ्रष्ट नहीं होगा या उसमें स्वार्थ नहीं हो सकता। मुझे पढ़ने वाले यही कहेंगे कि माना अधिकांश ऐसे ही हैं पर सभी कैसे हो सकते हैं? तो यह बात मुझे भी स्वीकार करनी पड़ेगी। परन्तु क्या इससे कोई इनकार कर सकता है कि नेता को पार्टी भी चलानी है और चुनाव भी जीतना है फिर विरोधी को हराने के लिए उसके हर सही गलत को उसे तो गलत ही बतना है। विरोधी को परास्त करने के हथकंडे तो उसे अपनाने ही पड़ेंगे वरना वो भारी पड़ेगा। क्या दुनिया में कोई किसी से कमजोर दिखना चाहेगा? कौन है जो परास्त होना चाहता है? इसी लिए हमेशा देशहित हमारे स्वार्थ तले दब जाता है। और जब देशहित स्वार्थ के आड़े आता है तो आदमी भटक जाता है, क्योंकि अब ना तो चंन्द्र शेखर आजाद पैदा होते हैं ना ही सुभाष चन्द्र बोस जो देश के लिए मर सकते है। आज देश पर मरने वालों को हम मूर्ख कहते हैं, क्योंकि हम अपनी नजर में बहुत आधुनिक और विकसित हो गए हैं।
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