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क्रिकेट का बुखार

एक विश्वास
एक विश्वास
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क्रिकेट विश्व कप शुरू हो चुका है और एक महामारी की तरह देश को अपने कब्जे में ले रहा है। हर वर्ग के लोग इसकी चपेट में हैं और जाने-अंजाने इसके दुश्परिणाम को भी भोग रहे हैं या फिर आगे भोगेंगे। यह बात अलग है कि लोग एक पल की खुशी के लिए क्या खो रहे हैं यह उनकी समझ में नहीं आने वाला है। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले या क्रिकेट का खाने वाले लोग किस कदर अनैतिकता का शिकार हैं क्या यह बात किसी से छिपी है? IPL में क्या होता है यह तो जगजाहिर है, और BCCI का हाल? किसी के बारे में क्या कहा जा सकता है? कौन क्या है या क्या कर रहा है कोई नहीं जानता।
आखिर राजनीति या उद्योग जगत के लोगों को खेल में आने की क्या आवश्यकता है? कोई चोर किसी घर में क्यों घुसता है क्या यह भी बताने की चीज है? चोर तो अपने रिश्तेदारों के घर भी जाता है तो इधर उधर देख कर हाथ साफ करने की ही बात सोचता है। कपिल देव, गुंडप्पा विश्वनाथ, चंद्रशेखर, प्रसन्ना जैसे खिलाड़ी इसी देश में हुए हैं जिनके बारे में कोई सपने में भी नहीं कह सकता है कि ये किसी गलत काम में कभी रहे होंगे। परन्तु आज के किसी भी खिलाड़ी पर विश्वास नहीं होता है। कपिल देव ने ICL की शुरुआत की तो BCCI ने IPL शुरू करवा दिया किस लिए सिर्फ कपिल को नीचा दिखने के लिए? नहीं, पैसा कमाने के लिए। और किसी भी खिलाड़ी ने कपिल का साथ नहीं दिया, सभी ने श्रीनिवासन का साथ दिया, क्यों? तो ऐसे ही हैं आज के खिलाड़ी और और यह खेल या इससे जुड़े लोग।
पाकिस्तान हमारा दुश्मन है और हमेशा रहेगा, हम कभी दोस्त नहीं हो सकते यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ। परंतु पाकिस्तान की हर के बाद जो व्यवहार देश के लोगो ने या मैदान पर हमारे एक खिलाड़ी ने किया (जैसा मैंने सुना) क्या वह किसी भी तरह से उचित या मरियादित था? मेरी सामझ में तो यह व्यवहार वैसा ही था जैसा कि उस युद्ध की जीत में होता है जिसे हम खुद लड़ कर जीते हों। यह खेल है इसे खेल की भावना से ही देखा जाना चाहिए और न्यूज़ चैनलों के चक्कर में हमें नहीं पड़ना चाहिए, मैं तो यही मानता हूँ वैसे हर व्यक्ति की अपनी सोच है और सभी अपने अनुसार जो सोचते हैं सही ही सोचते हैं।
शायद यह विश्व कप हर बार तभी होता है जब हमारे देश में परिक्षा का माहौल होता है। यह बच्चों के भविष्य के निर्माण का समय होता है और हमारे बच्चे क्रिकेट बुखार की चपेट में अपना कुछ तो नुकसान अवश्य कर बैठते हैं। वे पल-पल का परिणाम जानने के लिए उतावले रहते हैं। उन्हें समाचार में हार जीत की बात जानने का समय नहीं चाहिए उन्हें तो ताजे से ताजा और तुरन्त का परिणाम ही सुहाता है, भरे ही इसकी कोई कीमत क्यों ना उन्हें चुकनी पड़े।
तो आप ही सोचिए की असली मजे तो कोई और ले रहा है और हम हैं कि बस वैसे ही जैसे कि – बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना!

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