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देश की राजनैतिक दशा को क्या कभी सही दिशा मिलेगी या फिर हम विचारों और कुविचारों के अंतर्द्वंद्व में ही भटकते रहेंगे. आजादी के समय से लेकर आज तक हम राजनीति को मात्र वोट पाने का साधन मानते आए हैं. राजनैतिक व्यक्ति के लिए देश से ज्यादा जरूरी है वोट और जनता ने भी वोटों को हथियार बना लिया है. वोट के बदले जनता को देश का भला छोड़ बाकी सब चाहिए तथा नेता को देशहित छोड़ हर बाकी सरे काम अच्छे लगते हैं. वैसे तो सब आदर्शवाद का ही ढोल पीटते हैं परन्तु आदर्शवाद मात्र दिखावे की वस्तु है और निजी जीवन में इसका कोई महत्व नहीं होता. आज हर व्यक्ति दोहरी जिन्दगी जी रहा है. एक आदर्शवादी का सार्वजनिक जीवन जो सिर्फ दिखने के लिए है और दूसरा निजी जिन्दगी का, भोग का, दूसरों की निगाहों से छिपा रहने वाला जीवन है जो दिखे भले न पर होता वही असली है.
आज हम जिस अंधकार की ओर जा रहे हैं उसका अंत या तो है नहीं या फिर बहुत ही भयावह स्थिति पैदा करने वाला है. कारण साफ है. जब हम सब अपने स्वार्थ के लिए ही जिएँगे तो सिवाय अपने अन्य किसी का भला कभी नहीं सोच पाएंगे फिर बात चाहे देश की ही क्यों न हो. मुठ्ठी भर लोगों को छोड़ दीजिए तो कौन देश की फ़िक्र में लगा है आप खुद देख रहे हैं. और विडम्बना कि बात है कि जो देश के बारे में सोचते हैं उनके इख़्तियार में कुछ है नहीं और जो कुछ करने के लिए सक्षम हैं उन्हें कोई चिंता सताती ही नहीं. अब इन परिस्थितियों में देश का भला कौन कर सकता है. बस लड़ते और लड़ते रहो राम और रहीम के नाम पर और मर मिटो उन चीजों के लिए जो व्यर्थ और निरर्थक हैं. इतिहास खुद को दोहराएगा और हमें बार बार नष्ट करेगा मगर हम कुछ नहीं सीखेगें अपने अतीत से. बार बार हमारी हस्ती मिटेगी मगर हम यही गाते रहेंगे कि – “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं……….”.
बात है केंद्र द्वारा किए गए समझौते की जो नागा आतंकियों के साथ हुआ है. कश्मीर का हाल हो या असम का हर जगह एक ही सबक हमें मिला कि हम लाख समझौते कर लें पर आतंकी न सुधरे हैं न सुधरेंगे. अगर उन्हें सुधरना होता तो वे आतंकी बनते ही क्यों. परन्तु ये बात उन्हें जो स्वार्थ की राजनीति करते हैं कभी समझ नहीं आएगी. बात वहीँ वोटों पर ही आकर रूकती है. समझौता करना बुरा नहीं है पर कुपात्र से समझौता सही नहीं हो सकता क्योंकि उसमें हमेशा धोखा होता है. और मोदी सरकार यह गलती बार-बार दोहरा रही है जो देश के लिए बहुत ही घातक साबित होगी. स्वर्गीय राजीव गाँधी ने एक बार कहा था कि हमें नगा नहीं नगालैण्ड चाहिए पर वो भी वोटों के फेर में पड़ गए और बात बिगड़ गई आज फिर वही होने जा रहा है. कश्मीर का ताजा उदाहरण सामने है आतंकी वहाँ पूरी तरह बेकाबू हो रहे हैं. स्थिति बेकाबू है और भारत विरोध सिर चढ़ कर बोल रहा है. क्या गारंटी है की नगालैण्ड में ऐसा नहीं होगा. अस्सी के दशक में असम के उग्रवादियों को मुख्य धरा में लेन के लिए प्रयास हुए और जब चुनाव हुए तो जो प्रफुल्ल महंत सरकार बनी वो क्या थी सभी को इतना तो अवश्य ही पता होगा. मगर हुआ क्या? क्या असम से आतंकवाद खत्म हो गया? नहीं न हुआ है न होगा. क्योंकि ये समझौते होते ही हैं आधे अधूरे. शायद सस्ती लोकप्रियता के लिए.
अगर समझौता असफल हुआ तो बात और बिगड़ेगी. हालत अंदर बहार हर जगह बेकाबू हो रहे है और हम हाथ पे हाथ धरे बैठे हैं. पाकिस्तान हर सम्भव प्रयास कर रहा है भारत को घेरने के लिए और हम हर अवसर को गवां रहे हैं क्योंकि हम अपना पक्ष रखने के लिए कहीं भी अपने को सक्षम साबित करने में असफल ही पाते हैं. हम हर मुद्दे पर दयनीय स्थिति में होते हैं जैसे कि अपराध हमारा ही हो. कड़ा रुख अपनाना जैसे हमारे वश में ही नहीं है. इसी वजह से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे साथ वही व्यवहार होता है जो कि एक बच्चे के साथ होता है जैसे हमें कोई परिपक्व राष्ट्र मानने को तैयार ही नहीं है. मोदी जी कड़े कदम उठाएंगे ऐसा सोच कर लोगों ने वोट उन्हें दिया था परन्तु अब सभी क विश्वास टूट रहा है. यह स्थिति अत्यंत गम्भीर है. भविष्य अंधकारमय है, निराशा में डूबा हुआ. बावजूद इन सभी के हम फिर भी उम्मीद की किरण जगे बैठे हैं. सोचते हैं कि कभी तो हमारे दिन बहुरेंगे. कभी तो हमारे देश में भी कुछ अच्छा होगा.
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