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एक अनुत्तरित प्रश्न

एक विश्वास
एक विश्वास
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गुरुवर जरा बताओ तो,
किसको बना दिया था,
जन गण के मन का अधिनायक?
और किसे कहा था
मेरे भारत का भाग्य विधाता?
लोग पूछें या न पूछें
परन्तु
मुझे तो पूछना है।
क्योंकि,
किसने किया उद्धार देश का
मुझको आज जानना है।
जितनों को मैंने
इतिहास के पन्नों से जाना है,
उनमें से किसी को
इस दिल ने
भाग्य विधाता नहीं माना है।
हाँ कुछ को डाकू लुटेरा
कहा जिन्होंने
परन्तु पराक्रम खुद का नहीं कभी
दिखाया उन्होंने
दुनिया को बताया कि
वो ही थे जो लड़े
और स्वार्थ त्याग कर
देश के लिए मरे।
पर मैं कैसे मानूं?
मैंने तो बस यही जाना
कि वे देश को जागीर मानते थे।
जनता को तकदीर बाँटते थे।
देश को,
अय्याशी की चीज मानते थे।
सच कहूँ तो
मुझे वो डाकू ही भले लगे
जिन्होंने माँ की पीड़ा जानी
भाई बहनों की इज्जत मानी
फिर लूट लिया उनको
जो लूट रहे थे
भारत माँ के जन जन को।
वो सच में लड़े मरे,
माँ की अस्मिता को
अपना बलिदान कर चले
और निकम्मे तो
लालच में बैठे रहे।
लड़ते क्या,
जब मरने से डरते रहे?
तो,
आखिर कौन है,
मेरे देश का भाग्य विधाता?
कोई मुझको,
ये जरा सी बात
क्यों नहीं बताता?
क्यों ये देश,
आज भी
गीत गुलामी के ही है गाता?

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