एक विश्वास
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तुम्हारा
संदेश आया है
तुमने नया साल मनाया है
नए साल के आगमन पर
तुमने दीप जलाया है
मुझे भी
कुछ धुंध नजर आ रही है
शायद तुम्हारे
दीपक का धुँआ हो
कुछ राख भी दिखाई दी है
शायद
अपनी संस्कृति का जला अवशेष हो
कंठ अवरुद्ध है
वाणी भी खो गई है
परन्तु
परंपरा है तुम आधुनिकहों की
तो निभानी तो पड़ेगी ही
चोट कितनी भी गहरी हो
पीड़ा तो दबानी पड़ेगी ही
वाणी ना भी निकले तो
संकेतों से ही सही
शुभकामना देनी पड़ेगी ही
चलो
अपनो के लिए यह भी मंजूर
तो कीजिए स्वीकार
मेरी मंगलकामना हुज़ूर
परन्तु अपनी संस्कृति से
मत चले जाइए दूर
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