एक विश्वास
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इस जमाने में बुरे काम भी गुमनाम हैं।
आप खास नहीं हैं इसलिए बदनाम हैं॥
हमपर तो हक़ की लड़ाई के इल्जाम हैं?
पर उनकी खता माफ क्योंकि इमाम हैं॥
वो रसूख वाले नहीं उनपे इल्ज़ाम और।
हमारी इबादत के अच्छे नहीं अंजाम हैं॥
छलिया ही सही मगर उनके थे आदर्श।
कृष्ण नहीं आज यहाँ कंस ही तमाम हैं॥
फिर शुरू हो गया सियासत का दंगल।
झूठ की आग तपते सुबह और शाम हैं॥
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