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योगी से भयभीत क्यों?

एक विश्वास
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ऐसा सुना है कि जब गाँव में कभी हाथी आता है तो सारे कुत्ते उससे कुछ दूरी बनाकर भौंकते हुए पीछे पीछे चलते हैं और हाथी अपनी मस्त चाल चलता हुआ निकल जाता है वो विचलित भी नहीं होता और यह जानने की कोशिश भी नहीं करता है कि आखिर ये कुत्ते हैं कौन या कितने हैं और भौंक क्यों रहे हैं। भाजपा की धमाकेदार जीत फिर योगी का उप्र का मुखिया बनने के बाद कुछ यही भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व पटल पर देखने को मिल रहा है।
भारत में विपक्ष पहले दिन से ही वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ की बात कह रहा है। उसे तो २००४ का लोकसभा चुनाव, फिर दिल्ली व बिहार के विधानसभा चुनाव भी देखने चाहिए कि अगर ऐसा हो सकता तो वो पिछले चुनाव क्यों जीत गए और भाजपा के रहते हुए चुनाव में भाजपा ने क्यों खुद को हरा लिया। हो सकता है कि ये बयानबाजी ये कहें कि तब तो भाजपा मशीनों से छेड़छाड़ का ट्रायल कर रही थी या कि उसने पहले खुद को जानबूझकर हरवा लिया ताकि आगे जवाब दे सके खैर सबके अपने तर्क व कुतर्क होते हैं और अंबेडकर का बनाया संविधान कुछ और दे या न दे पर यह आजादी तो देता ही है कि जो भी बोलो जमकर बोलो भले ही बाते देश तोड़ने की ही क्यों न हों। भाजपा की जीत भारत में विपक्ष के साथ मणिशंकर सलमान खुर्शीद और आपियों पापियों के आका पाकिस्तान तथा कम्युनिस्टों के आका चीन को भी परेशान किए हुए है वहीं दूसरी तरफ फ्रांस रूस अमरीका से शायद बधाई संदेश भी मिले हैं।
असली समस्या योगी की ताजपोशी है। ओवेसी कह रहा है कि मोदी का न्यू इंडिया विजन यही है कि योगी जैसे को सीएम बना दिया। ये देशद्रोही जब यह कहते हैं कि पुलिस हटाओ फिर दिखाएँ कि हिंदू कहाँ रहता है तो उसका जवाब कोई क्यों नहीं देगा। हर व्यक्ति मायावती मुलायम अखिलेश लालू नितीश ममता तो नहीं बन सकता है न। जो अपने अस्तित्व की रक्षा करना जानता है वो जवाब नहीं मुँह तोड़ जवाब देगा ही जो उसका प्रकृति प्रदत्त अधिकार है। मगर वोटों के सौदागर यह कहाँ समझने या मानने वाले हैं। वो तो सत्ता के लिए अपने घर की इज्जत दाव पर लगा देते हैं। ऐसे लोग जब अत्याचार करते हैं या करवाते हैं या होते हुए देखते रहते हैं तभी देश पर मिटने के लिए धर्म जाति से परे हटकर भगत चंद्रशेखर अश्फाक सुभाष सावरकर हेडगेवार मोदी योगी सोम या राणा जैसे लोग खुद ब खुद पैदा होते हैं। ऐसे वीरों को जन्म तो यही आततायी ही देते हैं परन्तु जब ये आततायी पागल कुत्तों की तरह धुतकारे जाते हैं तो ये बेचैन होते हैं और पागल हो जाते है। फिर ये क्या बोलते हैं इन्हें खुद पता नहीं रहता है इसका कारण है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष या समाजवादी लोग वोटों के लिए इनको खुले साँड़ सा छोड़े रहते हैं। बात सीधी है कि यह राजनैतिक सहजीविता है जो गंभीर समस्या बन चुकी है।
ये देशद्रोही बने लोग आज खुद को सही और विरोधियों को गलत मान रहे हैं। यह सत्ता का संघर्ष तो है ही साथ की अस्तित्व का संघर्ष भी है जो अब वर्चस्व की लड़ाई का रूप ले चुका है क्योंकि जिसका वर्चस्व कायम होगा उसका अस्तित्व ही सुरक्षित रह पाएगा।
मैं तो यही कहूँगा कि सत्ता के लिए संघर्ष तो जरूर अनवरत चले परन्तु वर्चस्व के लिए नहीं क्योंकि यह संघर्ष आगे चलकर हमेशा जीवन मरण का संघर्ष बन जाता है जो सभी के अस्तित्व का विनाशक बनता है।

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