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जब राजनाथ सिंह उप्र के मुमं बने थे तो उन्होंने विशिष्ट बीटीसी की भर्ती को पूरा करने के लिए राज्य स्तर पर मेरिट बनाई थी जिसके अनुसार प्रशिक्षण पूरा प्रशिक्षण पूरा करवाकर नियुक्तियाँ होनी थीं। परन्तु मेधावियों का दुर्भाग्य कि राजनाथ सिंह की सरकार गिर गई और मौका मिला मायावती को जो गंदी राजनीति की मिसाल रही हैं और उन्होंने एक अच्छे कदम को आगे नहीं बढ़ने दिया साथ ही अपनी गंदी राजनीतिक सोच के चलते मेरिट सूची दुबारा जिलेवार बनवाई और मेधावियों को लात मार कर शिक्षा का मजाक बनानेवाले तिकड़मियों को नियुक्तियाँ बँटवारा दी।
फिर तो यह परिपाटी बन गई और कभी मुलायम तो कभी मायावती प्रदेश को बरबाद करते रहे।
नकल का धंधा पनपाया गया। फर्जी डिग्री व सर्टिफिकेट की दुकानें खोली गईं। और फिर शुरू हुआ पैसे व जाति के नाम पर नौकरी बाँटने या बेंचने का काम। यह काम अब तक अबाध व निर्विवाद रूप से चलता रहा है।
अब सरकार बदली है तो सभी को उम्मीद है कि कुछ अच्छा होना चाहिए और नौकरियों से भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए परन्तु यह तो समय ही बताएगा कि क्या होने वाला है और क्या होगा।
मैं तो यही चाहूँगा कि प्रदेश सरकार यदि वास्तव में प्रदेश का भला चाहती है तो जैसे अवैध बूचड़खाने बंद करवा रही है या मजनुओं की धर पकड़ करवा रही है उसी तर्ज़ पर एक कमेटी गठित करे और पिछले पंद्रह साल की सभी नियुक्तियों की निष्पक्ष जाँच करवाए। सभी नियुक्ति पाने वालों के सारे प्रमाणपत्र व डिग्रियों की निष्पक्ष जाँच हो जिससे मेधावियों के साथ हुए अन्याय का खुलासा हो सके। मझे लगता है कि यदि ऐसा हुआ तो संभवतः पचास प्रतिशत नियुक्तियाँ अवैध होंगी क्योंकि बहुत से लोग फर्जी डिग्रियों या सर्टिफिकेट्स पर नौकरी कर रहे हैं और दुर्भाग्य से वो मेधावी लोग आज भी सड़क पर हैं जिनका हक़ उन नौकरियों पर था।
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