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ये भ्रम नहीं चाल है

एक विश्वास
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भारत के सुप्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ फली नरीमन ने मोदी पर यह सवाल उठाया है कि क्या वो योगी को उप्र का मुमं बना कर यह संदेश दे रहे हैं कि भारत को एक धार्मिक हिंदू राष्ट्र बनाने की तरफ वो बढ़ रहे हैं? वो योगी को संविधान पर खतरे के रूप में देख रहे हैं। उनकी नजर में ऐसा क्यों है यह बात तो वही बता सकते हैं परन्तु इस बात का आंकलन करना अनिवार्य हो जाता है कि जो व्यक्ति आज तक दुनिया भर के देश विरोधी कामों को मूक दर्शक बना देखता रहा और बमुश्किल ही किसी ऐसे मुद्दे पर राय रखी होगी और ऐसे किसी काम के विरोध प्रदर्शन के लिए खड़ा हुआ हो वो आज इतना उद्विग्न और चिंतित क्यों है? उसके अंतर्मन में तो हम झाँक नहीं सकते हैं परन्तु कुछ सोच विचार तो कर सकते हैं।
योगी आदित्यनाथ हमेशा विवादों में रहे हैं। कभी बयानों के कारण तो कभी उनपर लगे आपराधिक आरोपों के कारण। ऐसे में उन पर अंगुली तो उठना ही है। जैसा खुद नरीमन जी ने कहा कि यदि कोई उनकी बात से इनकार करेगा तो वो या तो मोदी भक्त होगा या नेत्र रोगी क्योंकि तभी वो वह नहीं देख पा रहा है जो नरीमन साहब दिखाना चाह रहे हैं। यहाँ पर बात यह नहीं है कि कौन क्या देख रहा है बल्कि बात तो यह है कि कोई जो देख रहा है वह वही क्यों देख रहा है। निश्चय तौर पर कारण यही है कि एक भक्त है तो दूसरा विरोधी है। तीसरा पक्ष हो सकता है और है भी परन्तु न के बराबर जिसे आप निष्पक्ष कह सकते हैं। बात यह भी सही है कि निष्पक्ष है ही कौन फिर भी यह पूर्णरूपेण सही नहीं है।
जब हमारी आदत ही बन जाए चश्मा न उतारने की विरोधी के हर कदम के विरोध की फिर किसी बात की संभावना रहती ही कहाँ है। किसी कुतर्क की जिंदगी बहुत लंबी नहीं होती है परन्तु लोग पैबंद लगा कर जिंदगी भी लंबी कर लेते हैं। यही वजह है कि तर्क व कुतर्क के बीच नए विवाद जन्म लेते रहते हैं और सार्थकता समाप्त हो जाती है फिर समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है समाधान नहीं मिलता है। आज विडंबना की बात यह है कि जहाँ तर्क या कुतर्क की जगह नहीं है लोग वहाँ भी इसमें पड़ जाते हैं और किसी समाधान की स्थिति बनने ही नहीं देना चाहते हैं। जब समझदार यह काम करता है तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
किसी के प्रहार का जवाब देना या किसी के वार से अपनी रक्षा का अधिकार तो वही संविधान देता है जिसको नरीमन जी खतरे में देख रहे हैं। हमें या हमारे देश को कोई व्यक्ति या समुदाय या विचारधारा बरबाद या समाप्त करने की बात करे और हम मूकदर्शक बने रहें तो अच्छा है और अगर ऐसे कुकृत्यों का तिरस्कार करें प्रतिकार करें तो संविधान खतरे में, वाह रे देश के कानूनविदों, जवाब नहीं तुम्हारा। कोई अपने धर्म के आगे कानून को धत्ता बताए और सारी राजनैतिक जमातें उसपर चुप्पी साधे रहें और कानून के रखवाले होटलों में ऐय्याशी करते समय बिताएँ तो संविधान सुरक्षित और कोई इनके विरोध में आवाज उठाए तो देश दुनिया और संविधान सब पर एक साथ खतरा। कमाल की सोच है पढ़े लिखे धृतराष्ट्रपुत्रों की।
हमारे देश की संस्कृति भाषा से नफरत करने वाला कोई भी हो संत या मौलवी या पादरी सब गद्दार हैं और इनके विरोध में दहाड़ने वाले माँ भारत के लाल शेर हैं।
यहाँ जो भी है पहले भारतवासी है फिर कुछ और यह कहना हिंदू राष्ट्र की निशानी नहीं है यह तो राष्ट्रवाद है। जो राष्ट्रवादी नहीं हैं उनका विरोध हर भारतीय का कर्तव्य है और जो इस कर्तव्य का निर्वहन नहीं करता है वो चाहे कोई भी हो परन्तु है वो देशद्रोही ही।
हम तो नेहरू गाँधी को भी मात्र भारतवासी ही मानते हैं क्योंकि सच्चे देशभक्त तो आजाद भगत अश्फाक सुभाष आदि थे जिनको गाँधी नेहरू ने ही आगे नहीं बढ़ने दिया वरना देश बहुत पहले ही आजाद हो जाता और यह हाल भी नहीं होता कि यहाँ पढ़ लिख कर लोग गँवारू ही बने रहते या गद्दारी करते। नेता विरोधियो को हराने के लिए आतंकियों या नक्सलियों का साथ क्यों लेता है क्योंकि उसको संस्कार ही नहीं मिले मिलते भी कैसे देश को नेतृत्व ही सही नहीं मिला।
नरीमन जी किस वाद विवाद या विचारधारा से पीड़ित हैं यह तो वही जानें परन्तु मैं उनकी बात का समर्थक नहीं हो सकता हूँ क्योंकि मैं नहीं समझता कि देश में मनुस्मृति को जीवन पद्धति बना दिया जाएगा। नरीमन जी अगर योगी का विरोध कर रहे हैं तो वो यह नहीं कह सकते कि वो सोनिया मुलायम ममता लालू आदि का समर्थन नहीं कर रहे हैं। जनाब नरीमन साहब समझ नहीं है क्या कि इन्हीं की भक्त यह जनता अभी तक थी परन्तु उसने अब उनकी भक्ति छोड़ दी है तो क्यों? बिहार में बरगला ली गई थी तो उसका खामियाजा वहाँ सब भोग रहे हैं और वहीं से तो सबक लेकर उप्र की जनता ने यह कारनामा किया है और आप उसे बेवकूफ कहना चाह रहे हैं।
सारे राजनैतिक दल एक जैसे ही हैं परन्तु सभी में कुछ अच्छे भी हैं जो कभी सही मौका या सही जगह नहीं पाते परन्तु लगता है कि बीजेपी ने इस बार सही लोगों को सही जगह पर बैठाया है जो केजरीवाल तो साबित नहीं ही होंगे। और अगर ऐसा हुआ तो यह संपूर्ण भारत का दुर्भाग्य होगा।

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