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सत्ता के नशे में मोदी

एक विश्वास
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मोदी की देशभक्ति संभवतः पार्टीभक्ति तक सीमित हो गई है। हर तरफ मायूसी पसरती चली जा रही है और मोदी जैसे पार्टी को ही देश मान कर उसकी विजय पताका फहराते देख खुश व संतुष्ट हैं। वो भूल रहे हैं कि यहाँ तो जब भगवान भी लम्बी परीक्षा लेने लगते हैं तो लोग उन्हें भी किनारे कर देते हैं।
पाकिस्तान लगातार नापाक हरकतें कर रहा है और सरकार तो बस जैसे निंदा करने के लिए ही चुने गए हैं। टीवी पर इनके प्रतिनिधि भी अब सवालों के सही तर्कसंगत जवाब नहीं दे पा रहे हैं। जवाबों में बेशर्मी ही अधिक झलकती है।
आज की एक खबर केंद्रीय सतर्कता आयोग की ओर से। कुछ भ्रष्टाचार के आंकड़े दिए हैं २०१४ में लगभग ६० हजार केस दर्ज हुए थे तो २०१५ में यह संख्या आधी रह गई लगभग ३०हजार परन्तु २०१६ मे यह ६७% बढ़ गई और लगभग पचास हजार के दर्ज हुए। भ्रष्टाचार मुक्त हो रहा है देश? माना कि यह मंत्रियों ने नहीं किया परन्तु मातहतों ने तो किया तो क्यों किया? हिम्मत कैसे पड़ी उनकी? बात साफ है कि उन्हें किसी का डर नहीं है। क्यों नहीं है इसका जवाब मोदी या उनके मंत्री ही दे सकते हैं।
नोटबंदी का परिणाम आज तक सामने नहीं आया। परिणाम तो दूर की बात है यहाँ तो यह तक नहीं पता चल सका कि जिन बैंक वालों ने उस समय भ्रष्टाचार फैलाया था उनको सजा मिली या पुरस्कृत किया गया है। जनता को इतना जानने का हक तो है ही परन्तु जानकारी तो तब दी जाए जब कोई कार्यवाही की गई हो।
जीएसटी जब कांग्रेस ला रही थी तो यह बकवास चीज़ थी अब खुद लाए हैं तो बहुत शानदार हो गया है यह कानून। अभी कुछ भी कहना उचित नहीं है परन्तु भविष्य में तो शायद यह भी दुनिया भर के फालतू नियमों में से एक यह भी किताबों की शोभा बढ़ाएगा। अजीब स्थिति है कि कोई खाना खाने व पानी पीने का भी टैक्स दे तो कोई ऐय्याशियाँ करता घूमें और टैक्स तो छोड़िए ऐय्याशी का खर्च भी सरकारी खजाने से ही दिलवाए।
यह मोदी एंड कंपनी कहती है कि कश्मीर में जो हो रहा है वो पाकिस्तान करवा रहा है। वहाँ पर कुछ लोग देश विरोधी काम कर रहे हैं। इसके बाद बैठ कर तमाशा देखते हैं। पीडीपी हो या नेशनल कांफ्रेंस दोनों ही पार्टियाँ कभी देश हित में नहीं रही हैं इस बात का गवाह है इतिहास तो आप उन्हें अपना साझीदार क्यों बनाते हैं। क्या इसलिए कि हमारे जवान जो देश के लिए जान दे देते है उनकी बेइज्जती देशद्रोही करें? और हद तो तब हो जाती है जब आप लोग बेशर्मों की तरह बहस करते हैं और हमारे जवानों को धैर्य का पाठ पढ़ाते हैं। उनके हाथ से गोला बारूद तो छोड़िए पैलेट गन तक छीन लेते हैं वो भी देश के गद्दारों के कहने पर। तो क्या आपके लिए वो गद्दार ही अधिक महत्वपूर्ण हैं?
देश को बँटवारे की तरफ ले जानेवाले लोगों का देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए कहीं भी आना जाना व ठहरना देश के देशभक्त करदाता के पैसे पर होता है क्योंकि यह पैसा सरकार ही तो देती है उन्हें फलने फूलने के लिए और सरकार पैसे छापती तो नहीं है न। कहाँ से आता है यह पैसा? यह करदाता की जेब से आता है जो शतप्रतिशत ईमानदार है क्योंकि बेईमान तो कर देता ही नहीं है और उसे आप सब का संरक्षण भी मिलता है। जो ईमानदारी से कर देनेवाले सरकारी कर्मचारी हैं वो तो और भी प्रताणित हैं। बेचारे कर भी देते हैं और आपके हाथों अपनी पेंशन भी गँवा देते हैं क्योंकि आपको तो चोरों और हरामखोरों को या माफियाओं को पालना है उसी पैसे से।
अमरीका हो या रूस कहीं भी आपको इज्ज़त नहीं मिलती है और आप देश को बेइज्जत करवाने हर जगह पहुँच जाते हैं। बातें करते हैं रामायण और गीता की पर ज्ञान लेते हैं दुराचारी नेताओं से। धर्म ग्रंथ तो साफ साफ कहतें हैं कि कुपात्रों से दूर रहो। वैसे कुपात्र तो पहले आप सभी राजनीतिज्ञ ही हो तभी तुलसीदास जी की बात नहीं मानते कि “भय बिन होय न प्रीत”। आज तक जब आप किसी के सगे नहीं हुए तो आप का सगा कौन होगा। अपने स्वार्थ के लिए पहलू बदलते रहे हैं न।
जीव हत्या बंद हो मैं भी सहमत हूँ परन्तु तलाक का मुद्दा किसी धर्म में है तो आपको क्या करना है, रहने दीजिए न। किसी को समान कानून नहीं चाहिए तो कर दीजिए पूरी तरह से लागू उसपर उसके धर्म का कानून। कह दीजिए कि आज के बाद तुम अपने धर्म के कानून के अनुसार ही चलोगे और अपने समूह में रहो। बाहरी के साथ कोई हरकत की तो हम देखेंगे कि वहाँ तुमपर संविधान या तुम्हारा कानून क्या लागू होना है? वैसे भी आज सारे धर्म अपने मार्ग से भटके हुए हैं तो जरूरत तो यह है कि देश में आपातकाल लागू हो और सच्चे मन से नए सिरे से संविधान लिखा जाए जो भारत के अनुरूप हो। ये कट-पेस्ट वाला तो सिरे से खारिज हो और नए कानून बनें। अब ऐसे नियम हों जो संख्या में कम हों और कम व स्पष्ट शब्दों में लिखे हों जिनका एक ही अर्थ निकले और गंदी मानसिकता के अधिवक्ता उसके मनमाफिक अर्थ न निकाल सकें।
मोदी जी को अब सार्थक कदम उठाने चाहिए न कि वोट बैंक पालिटिक्स करनी चाहिए। अब समय आ गया है कि मुगलकाल और ब्रिटिशकाल दोनों को पूरी तरह से नष्ट कर दें उसके अवशेष भी न रह पाएँ। क्योंकि जब तक वो अवशेष बाकी रहेंगे तबतक हम झगड़ते ही रहेंगे। माना कि झगड़े तो मानव स्वभाव में हैं और ये समाप्त नहीं होंगे परन्तु सोच बदलेगी तो और सर्वाधिक मुद्दों पर एक राय होगी तो ये निश्चित ही बहुत कम होंगे। यही हमारी सफलता होगी।

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