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देश से बड़ी कुर्सी

एक विश्वास
एक विश्वास
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पाकिस्तान हमें रोज चोट पर चोट दिए जा रहा है। हमें बरबाद करने पर आमादा है। हमारे खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुए है। और हमारे नेता अपनी डफली अपना राग लिए बैठे हैं।
कोई कह रहा है कि मैं डिप्लोमेट की हैसियत से युद्ध को समाधान नहीं मानता तो कोई कहता है कि सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति वाली है और उचित समय पर कार्रवाई की जाएगी।
समझ नहीं आता कि युद्ध को स्थाई समाधान कब माना जाएगा या उचित समय कब आएगा क्योंकि यह बकवास करने वाले के दूर दूर के नाते रिश्तेदार भी सेना क्या उसके आसपास भी नहीं हैं बल्कि ये तो सेना के संरक्षण में ऐय्याशी कर रहे हैं और इसलिए इनका मरने वाला कौन है? किसका सिर कटेगा जिसपर इनको रोना आए?
जिसके सिर कट रहे हैं वो तो आम लोग हैं तो दर्द इनको क्यों होगा? दिखाने के लिए तो घड़ियाली आँसुओं की कमी है नहीं। नेता अभिनेता खिलाड़ी या लेखक सभी तो हैं असहिष्णुता दिखाने के लिए। और टीवी पर न्यूज चैनल है जो गद्दारों को ही कवरेज देते हैं। देश में जवानों की चिंता है किसे? किसी को नहीं है चिंता क्योंकि किसी का अपना नहीं मर रहा है। इसी लिए ये सब दुश्मन के साथ रिश्तेदारियाँ निभा रहे हैं, खेल नाटक फिल्म गीत संगीत आदि का आदान प्रदान कर रहे हैं। देश का स्वाभिमान गिरवी रखकर हमें चिढ़ा रहे हैं। कश्मीरी अलगाववादी लोगों को हमारे टैक्स के पैसे पर ऐश करवा रहे हैं और सुरक्षा दे रहे हैं जो बदले में कश्मीर में सेना पर पत्थर चला रहे हैं और गैर मुसलमान को मार काट रहे हैं।
यह सब हो सिर्फ इसलिए रहा है क्योंकि हमारे राजनीतिज्ञ कुर्सी के लिए एक दूसरे के कपड़े फाड़ रहे हैं और जनता दूरगामी परिणामों से परे क्षणिक लाभ के लिए इन्हीं में से किसी एक गद्दार का दामन जाति या धर्म के नाम पर थामकर जिंदाबाद मुर्दाबाद करने में जुटी है।

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