एक विश्वास
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जिद अच्छी नहीं होती ये मुझे पता है मगर।
जिद का जिद के सिवा जवाब भी तो नहीं॥
बात बढ़ती है जब हो जाती है तकरार पर।
बिना तकरार बात खत्म होती भी तो नहीं॥
प्यार से इक गुनहगार जो समझ जाता तो।
यूँ इंसानियत होती ये शर्मशार भी तो नहीं॥
उसकी नफ़रत को मोहब्बत में बदलूँ कैसे।
वो नादान मेरा प्यार समझता भी तो नहीं॥
हरदम मेरी मौत की दुआएँ करता रहता है।
पर दुआ दिल से वो तो करता भी तो नहीं॥
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