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दोगलेपन के माहिर नेता

एक विश्वास
एक विश्वास
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कपिल सिब्बल ने तीन तलाक पर कोर्ट में कहा कि जैसे राम जन्मभूमि आस्था का मुद्दा है वैसे ही तीन तलाक भी धर्म व आस्था से जुड़ा है।
मानना पड़ेगा कि कुत्ते भौंकने कि अलावा कुछ नहीं जानते और भौंकते भी हैं तो बिना सोचे समझे ही। अगर ऐसा नहीं होता तो यही लोग कभी राम के अस्तित्व को नकारते नहीं।
ये दोगले हमेशा दोगली बात ही करेंगे। रामसेतु मसले पर जब ये सरकार मे था तो कोर्ट को दलील दी थी कि राम का तो अस्तित्व ही काल्पनिक है इसलिए रामसेतु का कोई महत्व नहीं है।
आज इन दोगलों को अपने बाप को खुश करना है और पैसे ऐंठने हैं तो राम का अस्तित्व स्वीकार कर लिया। और तो और सुअरपन की हद देखिए कि ये वेश्या टाइप आइटम किसी के ईश्वर को एक धर्म की दकियानूसी प्रथा के बराबर ठहरा रहे हैं। ये नपुंसक लोग इसी मुद्दे को उलट कर ऐसा कहने का साहस करेंगे क्या? अपने घर की इज्ज़त नीलाम होने देंगे ये पर ऐसा बयान सपने में भी नहीं देंगे।
चलो सब छोड़ कर इस गंदगी से जन्मे कीड़े को सही ही मान लेते हैं फिर क्या यह दलील देगा कि तीन तलाक को कोर्ट वैध माने और रामजन्मभूमि का विवाद भी समाप्त करे क्योंकि एक को उसकी तीन तलाक की आस्था लौटाई जाएगी तो दूसरे को भी उसके ईश्वर का जन्मस्थान भी देना ही पड़ेगा क्योंकि यह उसके भी आस्था का मामला है।

जरा दूसरे पक्ष पर भी नज़र डाल लें

अमरीका ने ओसामा को पाकिस्तान में घुसकर मारा और जाधव मामले को बातचीत से सुलझाने की नसीहत दे रहा है यानी हमारे नेताओं को उनकी औकात बता रहा है।
हम कमज़ोर ही बने रहेंगे और हमें सब यूँ ही सीख देते रहेंगे। स्वाभिमान हम सदियों पहले छोड़ चुके हैं तो हमे मान सम्मान से फर्क भी क्या पड़नेवाला है।
यहाँ बस गद्दी पाने के लिए जोश व बहादुरी दिखाई देती है और गद्दी या कुर्सी मिलते ही सारा उत्साह व सारी वीरता ठंडी पड़ जाती है।
हमें तो यह भी चिंता नहीं कि चीन जो तिब्बत पहले ही हड़प चुका है और हमारे पूर्वोत्तर पर नजर गड़ाए बैठा है अब पाकिस्तान को भी निगल रहा है और पाकिस्तान निवाला बन भी चुका है। भारत से बदला लेने के लिए परेशान पाकिस्तान की हर हरकत उसे अमरीका या चीन के मुँह में और अंदर ठेल रही है। आज की परिस्थिति में यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अमरीका से चाहे एक बार बच भी जाए परन्तु चीन से अब नहीं ही बच पाएगा।
चीन की पाकिस्तान पर हुकूमत या वर्चस्व भारत के लिए निस्संदेह एक बहुत बड़े खतरे की घंटी है।
पर क्या हमारे नेता यह सब समझ पाएँगे या क्या इतिहास से सबक लेकर देश की रक्षा कर पाएँगे।

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