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ये और कितना गिरेंगे

एक विश्वास
एक विश्वास
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भारतीय राजनीति में हँसी मजाक करनेवाले नेता बहुत हुए हैं। यहाँ तक कि कुछ दिग्गज नेता भी मजाकिया लहजे में बहुत कुछ कह जाते थे और उनकी बातों में आनंद भी आता था। यहाँ तक कि पढ़े लिखे समझदार लोग भी उन बातों का मजा लिया करते थे और जिनका मजाक बनाया जाता था वो भी उसका बुरा नहीं मानते थे। कारण साफ है कि मजाक बस मजाक होता था। आज के नेताओं की तरह छिछोरापन नहीं होता था।

नकल से या अध्यापकों को गुंडेगीरी का रौब दिखाकर या बेइज्जत करने की धमकी दे कर पास होनेवाले आज के नेताओं की तरह नहीं थे पहले के लोग। आज भी कुछ मेहनत से पढ़ाई कर और अच्छी नौकरी छोड़ लोग राजनीति में आए हैं परन्तु बात तो यही है कि नौकरी वो भी अच्छी तो क्यों छोड़ दी। संत या महात्मा तो बने नहीं की नौकरी की परेशानियों या दुश्वारियों से ऊब गए थे इसलिए लात मार आए नौकरी को। नौकरी छोड़ी नेता बनने को अर्थात देश को दोनों हाथों लूटने के लिए। नौकरी में इतनी लूट की छूट कहाँ जितनी राजनीति में है। देखिए न माफिया या नक्सली या कौन जाने आतंकवादी भी जब जान लेते हैं कि अब हवा का रुख बदलने वाला है तो वो भी जान बचाने और अपनी गैंग को प्रश्रय देने के लिए मौका देख राजनीति में ही कदम रखते हैं। बड़ी आसान है उनके लिए यह डगर परन्तु हमारे या आपके लिए तो नहीं, आखिर क्यों? बिलकुल बात यही है कि “चोर चोर मौसेरे भाई।” तो राजनीति वो जगह है जहाँ न तो चरित्र की चिंता है न प्रशासन की। यहाँ तो प्रशासन आपके कुकर्म उलटे छिपाएगा और आपको आपके विरोधी गैंग से बचाएगा भी।

राजनीति भी क्या खूब निकृष्ट जगह है। इसकी तारीफ़ के लिए मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं। यह वो जगह है जहाँ आप जितने कुख्यात होंगे आपका रुतबा भी उतना ही बढ़ेगा। फिर तो आपके पास लाइसेंस होगा कि आप किसी को गाली देते हैं या मारते हैं या फिर मार ही देते हैं। कुछ भी करिए कौन आपसे पूछने आ रहा है। आपको तो लोग बचाएँगे और हर पार्टी आप के इंतजार में रात दिन एक कर देगी। मेरी बात का यकीन करिए मैं सच कह रहा हूँ। राबड़ी ने सुशील मोदी को नहीं उनकी बहन को गाली दी और पार्टी क्या विपक्ष भी मजे लेता रहा। किसने आलोचना की। हो सकता है किसी ने औपचारिकता निभा दी हो परन्तु इसकी तो भर्त्सना होनी चाहिए थी परन्तु किसी ने यह तक नहीं कहा कि आपस में कर लो गाली गलौज पर किसी के परिवार को अनावश्यक बीच में क्यों लाओ वो भी उसको जिसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। कहना चाहिए था न पर नहीं कहा कि तुम राजनीति की वेश्याओं आपस में ही वेश्यावृत्ति करो दूसरों के एड्स मत फैलाओ। ममता बनर्जी खुद नहीं विरोध कर सकी तो किसी देशद्रोही इमाम बरकाती को माधयम बनाया और फतवे तक जारी करवा दिए और जब खुद को गाली मिली तो तिलमिला गई।

दिग्विजय हों या श्रीप्रकाश हों, लालू हों या मुलायम हों, मायावती हों या केजरीवाल हों सभी का वही हाल है। ये सभी अपशब्दों का प्रयोग करनेवाले लोग हैं। शायद आप में से किसी को याद हो कि बहुत पहले शायद अस्सी के दशक में चुनाव के दौरान मायावती व सपा के रामशरण दास टीवी डिबेट में बैठे थे और उत्तेजना में दास ने मायावती को गुंडी कहा तो मायावती ने दास को गुंडा बताया। राणा या साक्षी या आजम जैसे लोग भी हैं जो सांप्रदायिक बातों को हवा देते हैं और आजम खाँ तो देशद्रोह की बातें ही नहीं करता है बल्कि धमकी देना और गाली देना इसका तब का काम है जब शायद राजनीति में इस तरह की गंदगी की शुरुआत हुई थी। कोई किसी को गाली देता है तो कोई किसी की बहन, बेटी, या माँ को गाली देता है और बदनाम करता है। कोई आतंकवादियों को जी कहता है परन्तु अपने प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का नाम तो छोड़िए बाप तक का नाम सम्मान से नहीं लेता है। कोई देश के ही लोगों को मौत का सौदागर बताता है तो कोई किसी को डायन या कालेधन की जननी बताता है। कोई विदेश जाकर दुश्मन देश में अपने देश की सरकार बदलवाने के लिए गुहार लगाता है तो कोई सेना का मनोबल तोड़ने के लिए उसके कार्यों का सबूत माँगता है और खुलेआम सेना के कार्यों में दखल ही नहीं देता बल्कि अलगाववादियों के पक्ष में खड़ा हो जाता है। कोई दूसरों के आरोपों का जवाब तक नहीं देना चाहता है तो कोई अपने पर आरोप लगने भर से तिलमिला कर दंगे करवाता है लोगों को उकसाकर तोड़ फोड़ करवाता है और मौका मिले तो विरोधी की जान भी लेने का प्रयास तक करता है।

मैंने जो बातें कही हैं उनके साथ नेताओं के नाम इसलिए नहीं जोड़ हैं क्योंकि आप सभी जानते हैं और सभी को अच्छी तरह याद भी होगा कि कब किस नेता ने क्या कुकर्म किया है। पार्टियाँ बदल जाती हैं परन्तु नेता वही रहता है उसका व्यवहार वही रहता है। सबकुछ बदल सकता है परन्तु नेता का स्वभाव और उसका चरित्र नहीं बदलता है। नेता हमेशा दोहरा चरित्र जीता है। घर बारह हर जगह। समाज में नेता शब्द आज गाली बन गया है। किसी को मैंने कहाँ कि तुम बहुत नालायक हो रहे हो और धूर्तता तुममे कूट कूट कर भर गई है तो वहीं खड़े तीसरे व्यक्ति ने कहा की अब यह गद्दारी भी करने लगा है। तो जिसको यह बातें कही गईं उसने कहा कि क्या तुम्हें लगता है कि मैं नेता हो गया हूँ। यह बात कितनी सच्ची है यह आप खुद ही रोज जाँचते परखते हैं। बस फर्क इतना सा है कि यह इतनी आम बात है कि इधर सुना और उधर भुला दिया वरना कभी जरा भी सोचा होता तो आप हमसे अधिक यह सब महसूस कर रहे होते।

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